जज बने सुपर संसद,वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से छिड़ी बहस*

 *जज बने सुपर संसद,वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से छिड़ी बहस* 

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*■ओम माथुर ■*      

     वक्फ संशोधन कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश को लेकर खड़े किए जा रहे सवालों को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस बयान ने और तूल दे दिया है कि अदालत राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती और जज सुपर संसद की तरह काम कर रहे हैं। धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से खफा हैं जिसमें 8 अप्रैल को उसने तमिलनाडु के राज्यपाल विरुद्ध सरकार केस में राज्यपाल के अधिकार की समय सीमा कर दी थी। जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की पीठ में कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।  सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 बिलों को राज्यपाल द्वारा रोके जाने को अवैध बताया था। 

       क्या देश में विधायिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति बन रही है? न्यायपालिका पर अक्सर यह सवाल उठते रहे हैं कि उसने खुद को बचाने के लिए आवरण कर रखा है। जबकि आम लोगों में यह धारणा है कि आज की ज्यूडिशरी में करप्शन तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन उसके खिलाफ कुछ भी बोलने पर कंटेंप्ट आफ कोर्ट का मामला दर्ज होने के कारण वो खामोश रहते हैं।

        धनखड़ ने यही सवाल उठाया है कि राष्ट्रपति से ऊपर जज नहीं है सकते। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस वर्मा के घर पर मिले जले नोटों के मामले को लेकर कहा कि उस मामले में एफआईआर क्यों नहीं हुई। क्या कुछ लोग कानून से ऊपर हैं। न्यायपालिका हमेशा सम्मान की प्रतीक रही है। लेकिन इस मामले में देरी से लोग असमंजस में हैं। उप राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार सबसे अहम होती है और सभी संवैधानिक संस्थाओं को सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए। 

        उधर, वक्फ संशोधन कानून दूसरे दिन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए 7 दिन का समय दिया है और कहा कि तब तक वक्फ बोर्ड की संपत्ति की स्थिति नहीं बदलेगी। कोर्ट से वक्फ घोषित संपत्ति डिनोटिफाइड नहीं होगी। वक्फ बोर्ड व केंद्रीय वक्फ परिषद में कोई नई नियुक्ति नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सोशल मीडिया पर इस बात पर बहस छिड़ गई है कि संसद और राष्ट्रपति सर्वोच्च है या सुप्रीम कोर्ट। कहा जा रहा है कि जब लोकसभा-राज्यसभा की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति ने कानून पर मोहर लगा दी, तो फिर सुप्रीम कोर्ट के जज इस पर फैसला करने वाले कौन होते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जजों को शपथ तो राष्ट्रपति दिलाता है यानी एक तरह से वह उनके बास हैं। लिखा जा रहा है कि न्यायपालिका अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर रही है। जब सब कुछ अदालत को ही करना है तो देश में सरकारों की जरूरत क्या है। अब समय आ गया है कि जब सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त करने का कालेजियम सिस्टम समाप्त कर दिया जाए या सरकार कानून बनाकर पहले सुप्रीम कोर्ट से मंजूर कराए,फिर संसद में पेश करे। 



     लोग टिप्पणी कर रहे हैं कि है सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में राम मंदिर था या नहीं इसके कागज मांग रहा था, तो फिर वक्फ की जमीन के कागजात क्यों ना मांगे जाए। लोग यह भी कह रहे हैं कि वक्फ कानून में संशोधन के खिलाफ पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट स्वत संज्ञान लेते हुए ममता सरकार को निर्देश क्यों नहीं देता। उधर,राम मंदिर में सहित कई मामलों में पैरवी भी करने वाले वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट भी अब धर्म देखकर न्याय करने लगा हैः हिंदुओं को हाईकोर्ट भेजा जाता है,लेकिन मुसलमानों की याचिका को तुरंत स्वीकार कर ली जाती है। उधर, वक्त कानून में संशोधन के लिए बनाई गई जेपीसी के अध्यक्ष भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने कहा है कि अगर वक्त कानून में एक भी गलती निकाली, तो वे इस्तीफा दे देंगे।




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