*नाटिका के माध्यम से मुनियों की चर्या एवं अपने वैराग्य का साहस समझाया*
टोड़ारायसिंह। कस्बे में पदमप्रभु जिनालय में परम पूज्य चारित्र महोदधि आर्यिका श्री 105 विष्णु प्रभा माताजी संसंघ एवं बाल ब्रह्मचारणी डॉ. शैली दीदी के सानिध्य में जैन पाठशाला का आठवां वार्षिक उत्सव हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में पाठशाला के बच्चों द्वारा शानदार मंगलाचरण की प्रस्तुति दी गई। पंडित सुनील झंडा द्वारा पाठशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत कर पाठशाला की महत्ता बताई, पूरे भारतवर्ष में लगभग 1500 जैन पाठशालाएं संचालित है, यह सभी पाठशालाएं श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से जुड़ी हुई है। पाठशाला संचालिका रेखा जैन एवं अंजना जैन द्वारा लिखित नाटिका पाठशाला के बच्चों द्वारा प्रस्तुत की गई। नाटक का नाम सुकौशन मुनि का वैराग्य का नाटिका के माध्यम से मुनियों की चर्या एवं अपने वैराग्य का साहस समझाया। पिता और पुत्र दोनों का वैराग्य हो जाता है, मां के अशुभ कर्म से अगले भव में मां बाघिन बनकर अपने ही पुत्र को खा जाती है। इसलिए कभी भी जैन मुद्रा धारी जैन साधुओं की निंदा नहीं करनी चाहिए। पाठशाला संचालिका रेखा जैन, अंजना जैन, श्यामा जैन, मीनाक्षी जैन ने छोटे-छोटे नन्हे मुन्ने बच्चों को 4 दिन से नाटक की तैयारी करवाई।माता जी ने सभी बच्चों को मंगल आशीर्वाद देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। और कहा कि आने वाले समय में यही बच्चे जैन धर्म की पताका लहराएंगे एवं जैन धर्म के रक्षक बनेंगे। माताजी ने अपनी दिव्य देशना के माध्यम से दिगम्बर संतों की चर्या के बारे में विस्तार से बताया कि जैन मुनि कभी भी किसी भी परिस्थितियों में अपना साहस नहीं खोते क्षमता और धैर्य को धारण करके अपनी आत्मा का ध्यान करते है। उपसर्गों से कभी भी विचलित नहीं होते। दिगम्बर संत सभी के प्रति करुणा क्षमा और दया के भाव रखते है। किसी से कभी भी भेदभाव नहीं रखते और सभी जीवों के कल्याण की भावना रखते है। इस दौरान महिलाएं, पुरुष और युवा, जैन पाठशाला के बालक बालिकाएं सैकड़ों जैन धर्मावलंबी उपस्थित रहे।